बदलते समय में जब रासायनिक खाद एवं कीटनाशकों के अंधाधुंध व्यवहार से खेत की उर्वरता पर विपरीत प्रभाव पड़ा है। तब से जैविक खेती की मांग बढ़ती जा रही है। इसके लिए भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ाना एक बड़ी आवष्यकता है। कहा गया है कि आवष्यकता ही आविष्कार की जननी है। अतः इसी ने खोज की है एक ऐसे जलीय पौधे की जो कई मायनों में विलक्षण है। इस विलक्षण पौधे का नाम है - अज़ोला ।

अजोला तेजी से बढ़ने वाला एक जलीय फर्न है, जो पानी के ऊपरी सतह पर तैरता रहता है। धान की फसल में नील हरित शैवाल की तरह ही अज़ोला का व्यवहार भी हरी खाद के रूप में किया जाता है। अज़ोला कि निचले हिस्से में नील हरित शैवाल उपस्थित रहता है जो कि वायुमण्डल से नाइट्रोजन का स्थिरीकरण करने के लिए उत्तरददायी होता है।
कैसे करें अज़ोला का उत्पादन


छायाँदार स्थान पर 2 मीटर लंबा, 1 मीटर चैड़ा तथा 45 सेंटीमीटर गहरा गड्ढ़ा खोदें।
गड्ढे में प्लास्टिक का आवरण बिछा दें जिससे पानी का रिसाव न हो।
अब गड्ढे में प्लास्टिक के ऊपर 10-15 कि०ग्रा० मिट्टी की एक परत बिछा दें।
इसके बाद 2 कि०ग्रा० आधा सड़ा गोबर 10 लीटर पानी में मिलाकर गड्ढे में डाल दें।
गड्ढे में पानी का स्तर 10-12 से०मी० तक रखें।
अब 500-1000 ग्राम अज़ोला गड्ढे में डाल दें।
10-15 दिन के अन्दर पूरा गड्ढा अज़ोला से भर जाएगा। इसके बाद 1000-1500 ग्राम अज़ोला प्रतिदिन छलनी से निकालें।
प्रत्येक सप्ताह एक बार 1 कि०ग्रा० गोबर गड्ढे मे डालते रहने से अज़ोला में वृद्धि तेजी से होता है।
अज़ोला - धान के फसल के लिए उपयोगी
अज़ोला का उपयोग धान के खेत में हरे खाद के रूप में किया जाता है क्योंकि इसमें 3-5 प्रतिशत नाइट्रोजन, 0.5-0.9 प्रतिशत फास्फोरस एवं 2-4.5 प्रतिशत पोटैशियम है। इसके अलावा आव्यश्यक सूक्ष्म पोषक तत्व जैसे 0.4-1 प्रतिशत, मैग्नेशियम 0.5-0.6 प्रतिशत, आयरन 0.42-0.50 एवं मैंगनीज़ 0.11 - 0.15 प्रतिशत उपस्थित है।
धान की रोपाई के एक सप्ताह बाद 0.5-1 टन प्रति हेक्टेयर की दर से ताजा अज़ोला डाला जाता है। 15-20 दिन के बाद अज़ोला की एक मोटी परत बन जाती है तथा यह अपने आप सड़ने लगती है। कीड़ों से बचाव हेतु नीम,करंज के बीज़, पत्तियों तथा खली का प्रयोग किया जाता हैं।
अज़ोला से 35-50 कि०ग्रा० प्रति हेक्टेयर की दर से नाइट्रोजन खेत को उपलब्ध होता है जिससे धान के खेत में 76-109 कि०ग्रा० यूरिया की खपत में बचत होती है।
धान के खेत में अज़ोला के व्यवहार से खर-पतवार नियंत्रित रहता है।
अज़ोला – पशुओं के लिए आदर्श पूरक आहार
अज़ोला के रासायनिक संघटन के आधार पर पशुओं के पूरक आहार के रूप में उपयोग किया जाता है।
इसमे ज्यादातर सभी आवश्यक अमीनो एसिड, विटामिन सक्रिय खनिज पदार्थ आदि पाए जाते हैं जिसके कारण पशुओं के लिए आदर्श जैविक पूरक आहार कहा जाता है।
अज़ोला पशुओं के लिए सुपाच्य होता है क्योंकि इसमें रेशा तथा लिग्निन कम मात्रा में पाया जाता है। पशुओं को देने से पहले अज़ोला को अच्छी तरह से धो लेना चाहिए, जिससे उसमें गोबर की गंध खत्म हो जाए तथा अन्य अवांछनीय गंदगी भी साफ कर लेनी चाहिए।
अज़ोला को पशु आहार में 10-30 प्रतिशत दे सकते हैं। इसे सिर्फ पूरक के रूप में उपयोग करना चाहिए।
इसे सभी पशुओं जैसे - गाय, भैंस, मुर्गी, भेड़, खरगोश और मछली को खिलाया जा सकता है।
इसको खिलाने से पशुओं में दूध एवं मांस में वृद्धि होती है।
यदि प्रतिदिन गाय को 1 किलो ग्राम सूखा अज़ोला पूरक आहार के रूप में दिया जाए तो दूध में लगभग 1 लीटर की वृद्धि हो जाती है।
अज़ोला में पाए जाने वाले पोषक तत्व (शुष्क भार के आाधार पर)
| पोषक तत्व | मात्रा |
| प्रोटीन | 20-25% |
| फास्फोरस | 0.15-1.0% |
| रेशा | 12-15% |
| मैग्निशियम | 0.25-50% |
| वसा | 3-4% |
| मैंगनीज | 60-2500 ppm |
| कार्बोहाइड्रेट | 45-50% |
| जिंक | 25-750 ppm |
| कैल्शियम | 0.45-1.25% |
| तांबा | 2-250 ppm |
| सल्फर | 0.20-0.75% |